HISTORTY OF RATANGARH MATA
MADULA DEVI AND KUWAR MAHARAJ

ESTABLISHMENT OF Ratangarh Mata TEMPLE
रतनगढ़ माता मंदिरकी स्थापना

Ratangarh Mata Mandir
  • ESTABLISHMENT OF Ratangarh Mata TEMPLE –रतनगढ़ माता मंदिर रामपुरा गाँव से 11 किमी दूर तथा दतिया से 65 किमी दूर स्थित है ! यह पवित्र स्थान घने जंगल मे सिंध नदी के तट पर स्थित है ! यहाँ हर वर्ष दिवाली दूज पर हजारों कि संख्या मे लोग दर्शन करने आते है !   
  • नदी से छ: किलोमीटर दूर स्थित रतनगढ़ माता मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पूर्व सत्रहवीं सदी मे हुई थी। छत्रपति शिवाजी जब बादशाह औरंजगेब की  कैद में थे, तब उनके गुरू समर्थ रामदास, रतनगढ माता की मडिया में लगभग 6 माह तक रहे थे। यहीं रहकर उन्होंने शिवाजी को छुड़ाने की योजना बनाई थी।   औरंजगेब के कैद से छूटकर शिवाजी सबसे पहले रतनगढ आये थे। उसी समय गुरूसमर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी द्वारा, माता की मूर्ति की स्थापना की गई थी। मां रतनगढ के प्रति अंचल सहित सीमावर्ती जिलों के लाखों लोगो की आस्था जुड़ी है। प्रति सोमवार को मां के दरबार में विशाल मेला लगता है। वही नवरात्रि में लाखों श्रृद्धालु माता के दर्शन करते है। 

HISTORY OF RATANGARH MATA
रतनगढ़ माता का इतिहास

    • History of Ratangarh Mata Mandir
    • रतनगढ़माता का इतिहास :घने जंगल में सिंध नदी के किनारें विध्यांचल पर्वत श्रृखला के पर्वत पर स्थित देवी मंदिर गवाह हैं कि, यहां पर राजा रतनसेन ने देश धर्म की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक मुगलों से लोहा लिया था। राजा शंकर शाह के पुत्र रतनसेंन ने तेहरवीं शताब्दी 900 वर्ष पूर्व  में उसी अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) से लोहा लिया था। जिसकी वजह से पद्मावती को जौहर करना पड़ा था। रानी पद्मिनी को हासिल, कर पाने में असफल अलाउद्दीन की नजर रतनगढ़ की रूपसी राजकुमारी माण्डुला के सौन्दर्य पर पड़ गई थी। उसे हासिल करने के लिए अलाउद्दीन ने रतनगढ़ पर आक्रमण किया था।  रतनगढ़ के राजा रतन सिंह के सात राजकुमार और एक पुत्री थी। पुत्री अत्यन्त सुन्दरी थी उसकी सुन्दरता की ख्याति से आकर्षित होकर उलाउद्दीन खिलजी ने उसे पाने के लिए रतनगढ़ की ओर सेना सहित प्रस्थान किया। घमासान युद्ध हुआ जिसमें रतन सिंह और उनके छः पुत्र मारे गये। सातवें पुत्र को बहिन ने तिलक करके तलवार देकर रणभूमि में युद्ध के लिए बिदा किया। राजकुमारी ने भाई की पराजय और मृत्यु का समाचार पाते ही माता वसुन्धरा से अपनी गोद में स्थान देने की प्रार्थना की। जिस प्रकार सीता जी के लिए माँ धरती ने शरण दी थीं, उसी प्रकार इस राजकुमारी के लिए भी उस पहाड़ के पत्थरों में एक विवर दिखाई दिया जिसमें वह राजकुमारी समा गई/ उसी राजकुमारी की यहां माता के रुप में पूजा होती है। यहां यह विवर आज भी देखा जा सकता है। युद्ध का स्मारक हजीरा पास में ही बना हुआ है। हजीरा उस स्थान को कहते हैं जहां हजार से अधिक मुसलमान एक साथ दफनाये गये हों। विन्सेण्ट स्मिथ ने इस देवगढ़ का उल्लेख किया है  राजा रतनसेन ने अपनी बेटी की लाज एंव राजपूत गौरव की रक्षा के लिए संघर्ष किया था। राजा ने बेटी की रक्षा का भार अपने छोटें भाई कुंवर जूं को सौंपकर, अलाउद्दीन खिलजी का सामना किया। जंग में खिलजी के हजारों योद्धा मारे गये जिससे उसे भागना पड़ा था।
    • प्रसिद्ध रतनगढ़ माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। यह मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया जिले से 63 किलोमीटर दूर मर्सैनी गांव के पास स्थित है। बीहड़ इलाका होने की वजह से यह मंदिर घने जंगल में पड़ता है। इसके बगल से ही सिंध नदी बहती है! यहां अपनी मन्नतों की पूर्ति के लिए आने वाले लोग दो मंदिर के दर्शन करते हैं। एक मंदिर है रतनगढ़ माता का और दूसरा है कुंवर महाराज का। मान्यताओं के अनुसार कुंवर महाराज रतनगढ़माता के भाई हैं। कहा जाता है कि कुंवर महाराज जब जंगल में शिकार करने जाते थे तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे। इसीलिए जब किसी इंसान को कोई विषैला जानवर काट लेता है तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंध लगाते हैं। बंध लगाने के बाद वो इंसान भाई दूज दीपावली के दूसरे दिन कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करता है यह मंदिर छत्रपति शिवाजी महाराज की मुगलों के ऊपर विजय कि निशानी है जो की सत्रहवीं सदी मे युध्द हुअा था छत्रपति शिवाजी और मुगलों के वीच और तब माता रतनगढ़ वाली और कुंवर महाराज ने मदद की थी क्योंकि ।माता रतन गढ़ वाली और कुंवर महाराज ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास जी को पथरी गढ़ यानी देव गढ़ के किले मे दर्शन दिए थे और शिवाजी महाराज को मुगलों से फिर से युध्द के लिए प्रेरित किया था और फिर जब पूरे भारत पर राज करने वाले मुगल शासन की सेना जब वीर मराठा शिवाजी की सेना से टकराई तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी। मुगल सेना को परास्त करने के बाद शिवाजी ने इस मंदिर को अपनी जीत की यादगार के रूप में बनवाया था।यह मंदिर एक विजयघोष की भी याद दिलाता है। विंध्याचल के पर्वत में होने की वजह से इस मंदिर की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। विंध्याचल पर्वत को मां दुर्गा का निवास स्थान भी माना जाता है। इस मंदिर में विराजमान माता रतनगढ़ का भक्तों में काफी महत्व हैं।
    • Ratangarh Mata Mandir-रतनगढ़ माता मंदिर: में बनी थी शिवाजी को आजाद कराने की रणनीतिहिन्दू स्वाभिमान की रक्षा करने वाले व् मराठा साम्राज्य की पताका फहराने वाले महान राजा छत्रपति शिवाजी को एक बार औरंगजेब ने पुत्र समेत धोखे से बुलाकर बंदी बना लिया था। शिवाजी महाराज को आजाद कराने उनके गुरू समर्थ स्वामी रामदास और दादा कोण देव महाराष्ट्र से ग्वालियर के पास दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर में आकर रहे
    • Ratangarh Mata Mandir रतनगढ़ माता मंदिर में की थी गुरु रामदास ने साधनारतनगढ़ माता मंदिर में ही समर्थ रामदास और दादा कोण देव ने आध्यात्मिक साधना के साथ स्वामी रामदास ने छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके पुत्र को आजाद कराने के लिए कूटनीतिक तैयारियां भी इसी मंदिर में रहकर की थीं।समर्थ गुरु स्वामी रामदास ने इस मंदिर में 6 महीने तक कठोर साधना की और शिवाजी महाराज को आगरा किले से छुड़ाने की रणनीति बनाई। औरंगजेब को भेंट के तौर पर फलों की टोकरियां भिजवाई जाती थीं. रामदास ने इस चीज का फायदा उठाकर पहले तो अपने एक शिष्य को औरंगजेब का विश्वास जीतने के लिए कहा और जब ऐसा करने में वो सफल हुआ तो भेंट स्वरूप औरंगजेब के यहां फलों से भरी टोकरियां भिजवाई गईं जो ऊपर से ढकी हुई थी। जिसके तहत स्वामी रामदास के शिष्यों ने जेल में शिवाजी महाराज को भेंट करने फलों की टोकरियां भेजनी शुरू कर दीं।कई दिनों की गहन जांच के बाद जब जेल के पहरेदारों को भरोसा हो गया तो एक बार बेहद बड़ी टोकरियों में फलों में छिपाकर कुछ हथियार भी शिवाजी और उनके पुत्र के लिए भेजे गए थे। अपने गुप्तचर से रामदास ने शिवाजी को योजना के बारे में पहले ही सूचना भिजवा दी थीशिवाजी महाराज ने भी पहले दिन से ही फलों की टोकरियों से कुछ फल लेकर बाकी फलों से भरी टोकरियां बाहर गरीबों में दान के लिए भेजना शुरू कर दी थीं।उस दिन जब शिवाजी महाराज को उन टोकरियों में हथियार मिले तो वह संकेत समझ गए और उन बड़ी टोकरियों में अपने साथ अपने पुत्र को बिठा कर गरीबों में फल बांटने के बहाने स्वामी रामदास के शिष्यों को भिजवा दीं। स्वामी रामदास के शिष्य उन टोकरियों के वजन से सारा मामला समझ गए और शिवाजी महाराज को उनके पुत्र के साथ आगरा से पार करग्वालियर भेज दिया गया। उसके बाद शिवाजी महाराज अपने पुत्र के साथ समर्थ गुरु स्वामी रामदास के पास दतिया पहुंच गए।
    • Ratangarh Mata Mandirरतनगढ़ माता मंदिर का करवाया शिवाजी ने जीर्णोद्धारछत्रपति शिवाजी महाराज ने रतनगढ़ माता मंदिर पहुचकर अनुष्ठान कर माता को घंटा चढ़ाया एवं उसके बाद मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया।शिवाजी महाराज के घंटा चढाने के बाद से मंदिर में घंटा चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हो गई, और श्रद्धालु़ मनोकामना पूर्ति के लिए यहां पीतल का घंटा चढ़ाने लगे। नवरात्रि के दिनों में श्रदालुओं द्वारा मंदिर में कई टन में घण्टे चढ़ जाते हैं। विंध्याचंल पर्वत श्रृखंलाओं के पर्वत पर, सिंध नदी के किनारे जंगल में विराजमान मां रतनगढ़ का दरबार, श्रृद्धालुओं की आस्था से कई वर्षों से रोशन हैं। इस मंदिर को सिद्ध माना जाता है इसलिए यहां मन्नतों के पूरी होने की भी चर्चाएं काफी मशहूर हैं। यहां पर भक्त अपनी-अपनी तरह से मां को श्रद्धा प्रकट करते हैं। कोई नंगे पांव तो कोई जमीन पर लेट- लेटकर यहां आता है। और कोई जवारे वो कर माता रानी की नौ दिन तक सेवा करते हैं और नवे दिन जवारे चढ़ाने पैदल कई कोषों दूर से आतें हैं और हर भक्त अपनी मुरादें पूर्ण कर अपने घर खुशियां लेकर वापस लौटता है.. ऐसा माँ के हर भक्त का कहना है कि मईया अपने भक्तों को कभी निराश नही करती, मईया भक्तों की हर समस्या को दूर कर उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती
    • Ratangarh Mata Mandir –रतनगढ़ माता मंदिर पर चढ़ा हैं देश का सबसे बढ़ा घंटा:मन्नत पूरी होने पर श्रृद्धालुओं द्वारा प्रतिवर्ष सैंकड़ो घंटे मां के दरबार में चढायें जाते है। मंदिर पर एकत्रित हुए घंटों की पूर्व में नीलामी की जाती थी। वर्ष 2015 में जिला प्रशासन की मंशा पर यहां पर एकत्रित घंटों को गलवाकर विशाल घंटा बनवाकर चढ़ाया गया है। लगभग 10 क्विंटल वजन के इस घंटे की नीचे की गोलाई का व्यास5 इंच है। घंटा टांगने के हुक के व्यास की गोलाई 1.8 इंच है। घंटे की एक ओर त्रिशूल दूसरी ओर बैल के सींग दर्शायें गये हैं। घंटे पर 18 ॐ एंव 18 स्वास्तिक चिन्हित किये गये है। पूरे घंटे के ऊपर से नीचे तक 9 रिंग बनाये गये है।रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्र 16 अक्टूबर2015 में देश का सबसे वजनी बजने वाला पीतल के घंटे का उदघाटन मान्यनिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और साथ मे आये नरोत्तम मिश्रा जी द्वारा किया गया । जिसको नौ धातुओं से मिलाकर बनाया गया हैऔर इस घंटे की खासियत यह है कि इसको कोई भी बजा सकता है चाहे चार साल का बालक या बालिका या फिर अस्सी साल का कोई बुजुर्ग इसका लगभग वजन दो टन है और इसको लटकाने वाले पिलर लगभग तीन टन के हैदरअसल मंदिर पर श्रद्घालुओं द्वारा चढ़ाने जाने वाले घंटों की मंदिर प्रबंधन कमेटी नीलामी कराती थी। कलेक्टर प्रकाश जांगरे ने घंटों की नीलामी न कराकर छोटे घंटों को मिलाकर बड़ा घंटा बनवाने का निर्णय लिया तथा यह कार्य ग्वालियर के मूर्तिकार प्रभात राय को सौंपा।पहले घंटा1100 किलो का बनवाया जा रहा था पर अब इसका वजन 1935 किलो है नवरात्र पर्व पर रतनगढ़ माता मंदिर पर श्रद्घालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है ।
    • दतिया जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर रतनगढ़ माता का मंदिर (Ratangarh Mata Temple) है। आदिकाल से मन्नत पूरी होने पर मां के दरबार में घंटा चढ़ाये जाने की परंपरा है। प्रतिवर्ष हजारों घंटे मां के दरबार में चढ़ाये जाते है। इसी श्रृद्धाभाव के तहत डकैतों ने भी यहां पर बडें-बडें घंटे चढ़ाये हैं। नवरात्रि एंव दीपावली की दूज पर यहां विशाल मेला लगता है। नवरात्रि के दिनों में यहां पर लाखों श्रृद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है।
    • Ratangarh Mata Mandir महलमें पहुंचा गलत संदेश लेकिन महल में गलत संदेश पहुंच गया था, जिससे शोक में डूबी रानियों ने जौहर कर लिया। कुंवर जू राजकुमारी माण्डुला को लेकर अलग छिपे हुए थे। जौहर की लपटें उठती देख माण्डुला ने भी खुद को घास के ढेर में घेर कर जौहर कर लिया था। राजकुमारी को नही बचा सकने की ग्लानि में कुंवर जू ने खुद को उसी आग में जला लिया। रतनगढ़ का ये जौहर चित्तौड़ में हुए रानी पद्मिनी के जौहर से कुछ कम नही था। बाद में राजा रतनसेन ने अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों की लाशें सिंध नदी के तट पर बसईजीत गांव के नजदीक दफना दी। जो आज हजीरा कहलाता हैं।राजकुमारी एंव कुंवर जू की याद में देवी मंदिर बनवाया गया था। बाद में मंदिर के पास ही माण्डुला और उनके चाचा कुंवर जू के छोटे मंदिर भी बनवा दिये गये। तभी से रतनगढ माता एंव कुवंर बाबा की पूजा की जाती है। यहां पर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। माता एंव कुंवर बाबा का स्थान चमत्कारिक एंव पवित्र हैं
 
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