दो दिवसीय लक्खी मेले में लगभाग 30-32 लाख श्रद्धालुओं ने किये दर्शन

Ratangarh Mata Mandir |रतनगढ़ धाम दतिया|
दतिया में रतनगढ़ माता मंदिर पर लगे लख्खी मेले में 24 घंटे में 30-32 लाख श्रद्धालु पहुंचे हैं। शनिवार से शुरू मेला सोमवार सुबह तक चलेगा। मध्यप्रदेश के अलावा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित अन्य प्रांतों से भी लोग लगातार यहां पहुंच रहे हैं।
मान्यता है कि रतनगढ़ माता के मंदिर पर सर्पदंश पीड़ितों का जहर उतर जाता है इसलिए श्रद्धालु यहां बंध कटवाने के लिए पहुंच रहे हैं। इनमें से कुछ श्रद्धालु तो पिंड भरकर यानी जमीन पर लेटकर यहां आ रहे हैं।
रतनगढ़ माता मंदिर विंध्याचल पर्वत पर जंगल में स्थित है।
यहां दूसरा मंदिर कुंवर महाराज का है।
बंध कटवाने पहुंचते हैं सर्पदंश पीड़ित
भक्त मानते हैं कि कुंवर बाबा यानी कुंवर गंगा रामदेव रतनगढ़ वाली माता के भाई हैं। वे अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। कुंवर बाबा जब जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे इसलिए जब किसी इंसान को सांप-बिच्छू जैसे जहरीला जानवर काट लेता है तो उसके घाव पर रतनगढ़ वाली माता का नाम लेकर तुलसी के गमले की मिट्टी या घर के मंदिर की ही भभूत का घेरा बना देते हैं। इसे माता का बंध कहते हैं। जब मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है तो मंदिर पहुंचकर माता के दर्शन करता है और बंध कटवाता है।


भक्त बोले- मुराद पूरी करती हैं रतनगढ़ माता

टीकमगढ़ से पहुंचे उमेश रजक ने बताया कि वे करीब 3 साल से मंदिर आ रहे हैं। साल 2023 में उनके चाचा को सांप ने काट लिया था। तब उन्होंने माता के नाम का बंध बांधा था। वे इसे खुलवाने पहुंचे हैं। उमेश ने कहा कि माता हर मुराद पूरी करती है।
उत्तर प्रदेश के जालौन से आई चंद्र प्रभा ठाकुर ने कहा, ‘मेरी भाभी संगीता को एक साल पहले सांप ने काट लिया था। परिजन ने उनको बंध लगा दिया था। अब बंध खुलवाने मंदिर आए हैं। यहां आकर सिंध नदी में स्नान करने के बाद भाभी अचेत हो गईं। उन्हें स्ट्रेचर से कुंवर बाबा मंदिर लाए। यहां
महाराज ने जल के छींटे मारे, झारा लगाया। परिक्रमा लगाने ने के बाद अब वे ठीक हैं। ‘

टीकमगढ़ के बबीना गांव से आईं कुसुम परिहार ने बताया कि उन्हें 4 महीने पहले हाथ में सांप ने काट लिया था। तब उन्होंने माता के नाम का बंध लगाया था। दूज पर बंध कटवाने के लिए मंदिर पहुंची हैं।


मेला की सुरक्षा को पुलिस और और प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की हैं। मेले की व्यवस्था के लिए दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर सहित ग्वालियर जिले से करीब तीन हजार से अधिक पुलिसकर्मी, सहित अन्य कर्मचारी तैनात किए गए है। वहीं, यहां 400 बीघा में कुल 25 पार्किंग बनाई गई है। यह पार्किंक स्थल 7 से 12 किलोमीटर दूर है। सर्पदंश पीड़ितों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए 3 हजार स्ट्रैचर की व्यवस्था की गई है।

Ratangarh Mata Mandir Bhai Dooj Lakhkhi Mela 2024


पुलिस को चैलेंज कर डाकू आते थे दर्शन करने
बीहड़, बागी और डाकू के लिए कुख्यात रही तीन प्रदेशों में फैली चंबल घाटी के डकैत भी यहां आते थे। डाकू (बागी) पुलिस को चैलेंज देकर इस मंदिर में दर्शन करने आते थे। चंबल के बीहड़ भी ऐसे डाकू स्वीकार नहीं करते थे, जिसने इस मंदिर में घंटा न चढ़ाया हो । इलाके का ऐसा कोई बागी नहीं, जिसने यहां आकर माथा न टेका हो। माधव सिंह, मोहर सिंह, मलखान, मानसिंह, जगन गुर्जर से लेकर फूलन देवी ने माता के चरणों में माथा टेक कर, घंटा चढ़ा कर आशीर्वाद लिया है। इस दौरान मंदिर या जंगल में आने वाले भक्तों से बागियों ने कोई वारदात को अंजाम नहीं दिया है।


                              सिद्ध पीठ रतनगढ़ धाम दतिया
रतनगढ़ का इतिहास जानने के लिए हमें बारहवीं शताब्दी से प्रारंभ करना चाहिए। उस वक्त ग्वालियर पर तोमरों का शासन था। तोमरों ने रिश्ते में अपने भानजे पुण्यपाल परमार को पवाया में बसाया। पवाया जो कि गोराघाट के आगे और डबरा से 5 किलोमीटर दूर एक पुरातात्विक नगर है। पवाया को धूमेश्वर महादेव और संस्कृत कवि भवभूति के लिए भारत वर्ष में जाना जाता है। पवाया से ही पुण्यपाल ने अपने शासन का विस्तार बेरछा तक किया। राजा पुण्यपाल ने 1231 से 1256 तक शासन किया। उनके चार पुत्र हुए रतनशाह, जैतशाह और शंकर शाह और चंद्रहंस राजा पुण्यपाल परमार ने रतनशाह को करैरा, जैतशाह को केरुवा एवं शंकर शाह को बेरछा की जागीर दी थी। बेरछा की जागीर मिलने के बाद शंकरशाह ने इसे स्वतंत्र रियासत के तौर पर बसाया और वह बेरछा के पहले राजा बने शंकर शाह के पुत्र हुए कनक सेन और रतनसेन। इनमें कनकसेन बेरछा रियासत के राजा रहे। कनकसेन के भाई रतनसेन ने अपनी रियासत के गांव रतनगढ़ जो कि सिंध नदी के दूसरी ओर स्थित था, पर एक दुर्ग का निर्माण करवाया। यह तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध था। पराक्रमी राजा रतनसेन अपने परिवार सहित दुर्ग में निवास करते हुए अपनी छोटी सी रियासत का संचालन करने लगे। रतनसेन के 9 पुत्र एक पुत्री माण्डुला थी। माता भगवती की उपासक माण्डूला देखने में अतिसुंदर थी।

Ratangarh Mata Mandir:-

इतिहासकारों ने लिखा है कि तेरहवी शताब्दी में ही अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास सिद्ध पीठ रतनगढ धाम दतिया
अपनी सीमाओं का विस्तार करते हुए इटावा तक आ गया। इसी दौरान उसे देवगढ़ के राजा जो कि रतनसेन से ईर्ष्या रखते थे ने मांडूला की सुंदरता के बारे मे बताया अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रतनसेन के समक्ष विवाह का प्रस्ताव भिजवाया जिसे रतनसेन ने अस्वीकार कर दिया। नाराज अलाउद्दीन खिलजी ने रतनगढ़ पर आक्रमण कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी मरसेनी चरोखरा के रास्ते रतनगढ़ पहुंचा। रतनसेन एवं खिलजी को सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। देवगढ़ के राजा ने खिलजी को उस द्वार का पता दे दिया जिससे रतनगढ़ रसद पहुंचती थी। खिलजी ने दुर्ग के उस दरवाजे पर कब्जा कर लिया और अंदर रसद जाना बंद हो गई। रसद के अभाव में सेना कमजोर पड़ती गई। अंतिम विकल्प के रूप में रतनसेन अपनी सेना और पुत्रों सहित सीधे युद्ध के मैदान में कूद पड़े। राजपूत सेना की संख्या खिलजी के सामने काफी कम थी और कम समय में ही राजा रतनसेन को बीरगति प्राप्त हुई। उनके पुत्र भी एक एक कर वीरगति को प्राप्त होते गए। यहां राजपूताना शोर्य की गाथा
भी देखी गई। जब किले के अंदर महिलाओं ने देखा कि उनके पति युद्ध में शहीद हो चुके हैं तो राजा रतनसेन की रानी सहित उन्होने आत्मोत्सर्ग कर लिया।
राजकुमारी मांडूला को लगा कि यह सब उन्ही के कारण हुआ। पर वह किसी भी तरह खिलजी के कब्जे में नहीं जाना चाहती थी। प्रख्यात विद्वान पं. गंगाराम शास्त्री के सनकेश्वर सतक के अनुसार देवी भक्त मांडूला ने पृथ्वी माता से आह्वान किया कि वह उन्हें अपनी गोद में ले लें और वह धरती में समा गई। युद्ध की समाप्ति परमार राजा रतनसेन की सेना समेत मौत के साथ हुई। खिलजी ने जब दुर्ग में प्रवेश किया तो वहां जलती चिताओं के अलावा उसे कुछ न मिला। क्रोधित होकर उसने देवगढ़ के राजा को वहीं बुलाया और उसकी भी हत्या कर दी। खिलजी की सेनाओं ने रतनगढ़ के किले को काफी क्षति पहुंचाई। वर्तमान में जहां रतनगढ़ का मंदिर बना है वहां पहले मांडूला की मड़िया हुआ करती थी, यही वह स्थान है जहां देवी भक्त मांडूला ने प्राण त्यागे थे। मुगल सेना के लोगों के मरने के बाद जहां उन्हें दफनाया गया वह हजीरा अभी भी मरसेनी के आगे बना है। राजा रतनसेन के साथ उनके सैनिकों की अंत्योष्टि चिताई में हुई तथा कुमारों की याद में वर्तमान कुंअर साहब के स्थान पर चबूतरा बनाया गया। पहाड़ी पर बना किला अवशेष के रूप में कुअर बाबा के पीछे अभी भी है। हालांकि उसके ऊपरी हिस्से पर कब्जा होने के कारण लोग अंदर नहीं जा पाते।

मेले में लगभग 30 से 32 लाख श्रद्वालुओं ने किए माता के दर्शन
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#दतिया जिले की सेवढ़ा तहसील में स्थित मां रतनगढ़ मंदिर पर प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 1 नवम्बर से 3 नवम्बर तक #दीपावली की #दौज_मेला का भव्य आयोजन हुआ

मेले में श्रद्वालुओं की संख्या हर वर्ष की भांति अधिकतम 30 से 32 लाख के लगभग देखने को मिली। सभी श्रद्वालुओं ने बड़ी शांतिपूर्वक बेहतर तरीके से मां रतनगढ़ माता एवं कुंअर बाबा के दर्शन किए।

कलेक्टर श्री संदीप कुमार माकिन एवं पुलिस अधीक्षक श्री वीरेन्द्र कुमार मिश्रा ने #रतनगढ़_मेला2024 संपन्न होने पर सभी नागरिकों एवं जिले के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया।

Dr Mohan Yadav CM Madhya Pradesh
Department of Religious trusts & Endowments, MP #JansamparkMP #मध्यप्रदेश #datia #festivals
Collector Office Datia

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