पितृ पक्ष में करें सभी प्रकार के पितृ दोषों को निवारण के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ
Pitra Paksha Me Apne Pitro Ko Khush Kaise Karen

Pitra Paksha Me Apne Pitro Ko Khush Kaise Karen-

17 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक को श्राद्ध पक्ष का समय रहेगा,पितृ पक्ष में आप अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अच्छा माना जाता है. आप अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए 11 दिन तक राम नाम का जाप करें और 1 पितृ सूक्तम या पितृ स्त्रोत का पाठ पितृ पक्ष में अर्पित कर सकते हैं। #pitrasuktam #pitrastrotra #ramnnam #jaishreeram #pitrapaksha2024

पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, पंचबलि कर्म, दान, श्राद्ध आदि किए जाते हैं. इनके अलावा आप अधिक मास अमावस्या पर पितरों को खुश करके आशीर्वाद पाने के लिए पितृ सूक्त का पाठ कर सकते हैं.

आप लंबे समय तक मंत्र जाप नहीं कर सकते हैं तो अमावस्या को या फिर पितृ पक्ष में पितृ सूक्त का पाठ करें. पितृ सूक्त में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्लोक दिए गए हैं, जिसमें देव, मनुष्य, ऋषि, मुनि समेत सभी पितरों का गुणगान किया गया है. इसका पूरा भाव यह है कि हम पितरों को प्रणाम और सम्मान करके तृप्त कर रहे हैं, वे तृप्त होकर आशीर्वाद दें, ताकि जीवन में उन्नति हो, कार्य सफल हों, दुख मिटे और वंश की वृद्धि हो.

पितृ सूक्त पाठ के समय ध्यान रखें 2 बातें

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पितृ पक्ष में करें सभी प्रकार के पितृ दोषों को निवारण के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ

पितृ सूक्त पाठ के समय ध्यान रखें 2 बातें

  1. अमावस्या के दिन जब आप पितृ सूक्त पाठ करना चाहते हैं तो सबसे पहले स्नान करके पवित्र हो जाएं. फिर अपने पितरों को स्मरण करके जल से विधिपूर्वक तर्पण दें. उसके बाद ही पितृ सूक्त पाठ करें.
  2. पितृ सूक्त पाठ पढ़ने से पूर्व कुश के आसन पर बैठकर मन को शांत कर लें. फिर एक तेल वाला दीपक पितरों के लिए जलाएं. उसके बाद पितरों को ध्यान करके पितृ सूक्त का पाठ प्रारंभ करें.

पितृ सूक्त पाठ (Pitra Paksha Me Apne Pitro Ko Khush Kaise Karen)

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पितृ पक्ष में करें सभी प्रकार के पितृ दोषों को निवारण के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ

पितृ सूक्त पाठ

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

पितृ स्तोत्र (Pitra Stotra)

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पितृ पक्ष में करें सभी प्रकार के पितृ दोषों को निवारण के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ

पितृ स्तोत्र (Pitra Stotra)

पितृ स्तोत्र अपने पूर्वजों के लिए किया जाता है। विशेष रूप से पितृ पक्ष में यदि पितृ स्त्रोत का पाठ किया जाता है। तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। घर में सुख समृद्धि आने लगती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है उन्हें नित्य इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। यह स्त्रोत मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। जो लोग नित्य इस स्त्रोत का पाठ नहीं कर पाते है वह चतुर्दशी और अमावस्या के दिन इस स्त्रोत का पाठ कर सकते है। पुराणों में यह दिन पितरों के लिए विशेष माना जाता है।

पितृ स्तोत्र का महत्व (Importance of Pitra Stotra)

पितृ स्त्रोत बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत होता है। यदि किसी के घर में प्रतिदिन कलह क्लेश होता रहता है। बनते हुए कार्य बिगड़ने लगते है। बार बार बीमार होने लगते है। धन की हानि होती है तो यह पितृ दोष के कारण भी हो सकता है। इसलिए यदि व्यक्ति पितृ स्त्रोत का नित्य पाठ करता है तो वह इन सभी परेशानियों से मुक्ति पा सकता है। साथ ही वह अपने पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद भी प्राप्त कर सकता है।

पितृ स्तोत्र पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Pitru Stotra)

जिस भी परिवार में पितृ स्त्रोत का पाठ नियम पूर्वक किया जाता है। उस घर के सभी सदस्य प्रसन्न और स्वथ्य रहते हैं। परिवार में सभी कार्य सरलता से होने लगते है। किसी भी कार्य में कोई अर्चन नहीं आती है।

जो भी साधक नियमित रूप से इस स्त्रोत का पाठ करता है। उसे नौकरी और व्यापार में तरक्की मिलती है। साथ ही उसका यश बढ़ता है। उसे उसके कार्य क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त होती है।

इस स्त्रोत का पाठ करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है। घर में कभी भी कलह और लड़ाई झगड़ा नहीं होता है। घर में शांति का वातावरण बना रहता है।

पितृ दोष के निवारण के लिए यह स्त्रोत बहुत ही लाभकारी होता है। इस कारण जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है। उसे इस स्त्रोत का पाठ निश्चित रूप से करना चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति को स्वप्न में बार-बार पितृ दिखते हैं तो उन्हें पितृ स्त्रोत का पाठ करना चाहिए इससे लाभ मिलता है।

पितृ स्तोत्र का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Pitru Stotra)

।।अथ पितृस्तोत्र ।।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।। 1।।

हिंदी अर्थ – जो सबके द्वारा पूजा किये जाने योग्य, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी और दिव्यदृष्टि से सम्पन्न है। उन पितरों को मैं सदा प्रणाम करता हूं।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।। 2।।

हिंदी अर्थ – जो इन्द्र आदि समस्त देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।। 3।।

हिंदी अर्थ – जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य देव तथा चन्द्र देव के भी नायक हैं । उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूं।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। 4।।

हिंदी अर्थ – नक्षत्रों, ग्रहों, अग्नि, वायु, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। उनका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।। 5।।

हिंदी अर्थ – जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित और सदा अक्षय फल को देने वाले हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। 6।।

हिंदी अर्थ – प्रजापति, सोम, कश्यप, वरूण और योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।। 7।।

हिंदी अर्थ – सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को प्रणाम है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू जगतपिता ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं। आपका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।। 8।।

हिंदी अर्थ – चन्द्र देव के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूं। उनका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।। 9।।

हिंदी अर्थ – अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि श्री पितर जी यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। उनका आशीर्वाद सदा बना रहे।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।। 10।।

हिंदी अर्थ – जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर बारम्बार प्रणाम करता हूं। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो उनका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।

पितृ पक्ष में करें सभी प्रकार के पितृ दोषों को निवारण के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ
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