History of Dandraua Sarkar 1008
About Dandraua Sarkar 1008 *दंदरौआ धाम 1008 के बारे में*
Dandraua Sarkar 1008-
डॉ. हनुमान के नाम से ख्यातिलब्ध ”गोपी वेश धारी ”श्री हनुमान जी की प्रस्तर मूर्ति यहाँ लोगों के दर्द के हरण के लिए जानी जाती है !लाखो श्रद्धालु यहाँ अपने शारीरिक व मानसिक ब्याधियों से निजात पाने के लिए आते है और श्री हनुमान जी की शूछम किन्तु दिब्य कृपा से रोग मुक्त हो जाते है !
”नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा” इसी अवधारणा को साकार करते श्री हनुमान जी यहाँ छोटे से गांव ”दंदरौआ” में लोगों के आस्था के केंद्र बिंदु बने है !
दंदरौआ ग्राम जिला भिंड, तहसील मेंहगांव के ग्राम धमूरी और चिरोल के मध्य स्थित है ! ये चारो ओर से सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है ! भिंड शहर से जाने वाले श्रद्धालु में गांव से पूरब की ओर घूम कर मऊ मार्ग से दंदरौआ धाम पहुंचते है ! ग्वालियर शहर से जानेवाले श्रद्धालु ग्वालियर भिंड मार्ग से गोहद अथवा मेंहगांव से पूर्व दिशा के सड़क मार्ग से अथवा ग्वालियर से बड़ा गांव के रास्ते अथवा ग्वालियर डबरा-मौ मार्ग से ६५ -७० किलोमीटर की यात्रा तय कर के श्री डॉ हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम पहुंच सकते है !
यह धाम ब्रह्मलीन गुरुबाबा श्री श्री १०८ बाबा लछमन दस जी महराज के शिस्य ब्रह्मलीन महंत बाबा पुरुषोत्तमदास जी महराज की साधना स्थली है और वर्तमान में उनके शिष्य श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर संत रामदास जी महाराज की महंती में है ! हमारी धर्म संस्कृति में ”मन्त्र ” विज्ञानं का महत्त्व पौराणिक ग्रंथों में देखने को मिलता है !गोस्वामी तुलशीदास जी ने अपनी बात ब्याधि से मुक्ति के लिए ”श्री हनुमनबाहुक ”की रचना की थी और वे बात ब्याधि से मुक्त हो गए थे ! श्री दंदरौआ हनुमान जी का ये मन्त्र -”ओम श्री दंदरौआ हनुमंते नमः ”भी ब्याधियों के निवारण में संजीवनी सामान है जिसका शाब्दिक विश्लेसण इस प्रकार है —-ओम –आयं,-सतोगुण -रजोगुण -तमोगुण सक्तियों में संतुलन का कार्य करता है !इसमे ब्रह्मा -विष्णु -महेश त्रिदेव शक्ति समाहित है ,जो वात -पित्त -कफ को संतुलित करने की छमता रखता है ! श्री –ये माँ लक्ष्मी है ,जिनकी कृपा से सुख समृद्धि व वैभव प्राप्त होता है ! ”दं”–ये दर्द का निवारण और अपने ईस्ट के समछ दया का भाव प्रकट करता है ! जो धर्म और मोछ का मार्ग प्रसस्थ करता है ! ”रौ ”–संताप ,रोग ,पीड़ा ब्याधित ब्यक्तियों की प्रसन्नता का कारक है! और ”आ ”–आने वाला पीड़ित प्रसन्न हो वपाश जाता है ! यैसे हमारे ” डॉ हनुमान” जातकों की पीड़ा का सदैव हरण करते रहे !
Dandraua Sarkar 1008-
भारतवर्ष में स्थानो, ग्रामों के नाम किसी न किसी ऐतिहाषिक, पौराणिक, या छेत्रीय घटनावों के आधार पर रखने की परम्परा रही है! इस छेत्र में अनेक स्थानो के नाम भी इसी आधार पर रखे गए है! जो अपभृंष हो चुके है! जैसे भगवान कृष्ण की गौएँ चराने की जहाँ तक हद (सीमा )थी उसे अब गोहद कहा जाता है! पांडवो को जन्म देने वाली कुंती के जन्म स्थान को कुंतल पुर कहा जाता था जो अब अपभृंश हो कुतवार कहा जाता है! शोडित पुर को शिहोनिया के नाम से पुकारा जाता है! महिष्मति का अपभृंश हो अब” मौ ” कहा जाता है! इसी प्रकार द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश “”दंदरौआ “” हो गया है!
यहाँ के डॉ हनुमान जी का अर्चाविग्रह ५०० वर्ष पुराना है !ये इस छेत्र के मुख्य देवता है! स्थानीय लोग चिकित्सीय सुविधाओं के आभाव में आस्था और विश्वास के सहारे इनके दरबार में जाते थे! श्री हनुमान जी के दिब्य प्रभाव से वे अपनी आधि -ब्याधि, दुःख -दर्द, मानसिक व शारीरिक पीड़ा से निजात पाते रहे है! इस लिए ही यहां विराजे हनुमान जी फोड़ा, फुन्शी, अनेक चर्म रोगो सहित सभी शारीरिक ब्याधियों से निजात दिलाने वाले देवता के रूप में प्रशिद्ध हुए और उन्हें द्वन्द -रउआ अर्थात दर्द के निवारण करने वाले के रूप में नाम मिला ! जब उनके इस प्रताप से इनके आसपास लोगो ने अपना निवासः बनाया तो उस ग्राम का नाम द्वंदरौआ रखा जो कालांतर में अपभृंश हो ”दंदरौआ ” के नाम से जाना जाता है! हिंदी भाषी ग्रामीण लोग आज भी द्वन्द को” दंद” और दर्द को” दद्द” बोलते है !
दंदरौआ सब्द जो द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश है, रीयते छीयते इति र ‘इस ब्याकरण ब्युत्पत्ति के अनुसार रीढ़ छ्ये धातु से अप प्रत्यय हो कर ”र ” सब्द बनता है, जिसका अर्थ है नस्ट होने वाला! ”द्वन्द छीयते यत्र सः” अथवा ”दर्द छीयते यत्र सः ” दर्दराः एतदृशः ”! द्वन्दरः अथवा दरदर का अर्थ भी द्वन्द अथवा दर्द को छीन करने वाला है! इस प्रकार निश्चित है की यहाँ स्थित श्री हनुमान जी ग्राम स्थापित काल के पूर्व से ही आधि, ब्याधि, रोगों का निवारण करते रहे है! ऐसे डॉ हनुमान सदैव जातकों के दुःख, दर्दों का निवारण करते रहे!
''महंत'' रामदास जी महराज-
Dandraua Sarkar 1008-
आप का जन्म ग्राम मडरोली जिला भिंड में चचोरे सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था ! आप के बचपन का नाम ” रामनरेश ”था ! आप बचपन से ही सरल, सांतनिष्ठ, भगवान के प्रति प्रेम रखने वाले थे ! जब आप ने कच्छा ८ पास कर ली तो तब श्री हनुमान मंदिर के पुजारी जीवनलाल जी से ज्योतिस ज्ञान प्राप्त करने के लिए दंदरौआ आश्रम जाने लगे !तभी महंत बाबा श्री श्री १०८ श्री पुरुसोत्तमदाश जी महराज की दृस्टि इन पर पड़ी ! उन्होंने इनमे संत के गुणों को महसूस किया ! महंतबाबा ने बालक राम नरेश को आश्रम में ही रुक कर पढाई करने के लिए कहा ! बालक रामनरेश अब आश्रम में रह कर महंत बाबा का आश्रम के कामों में हाथ बटाने लगे ! गुरु की कृपा से इनका ध्यान प्रभु की सेवा में बढ़ने लगा और घर के लोगों से मोह समाप्त होने लगा ! इसी दौरान महंत बाबा को श्री हनुमान जी की सूछ्म दिब्य सक्तियों ने स्वप्न में बालक रामनरेश के बारे में संकेत दिए ! वे उनपर विस्वाश करने लगे !
महंत बाबा पुरुसोत्तम दाश जी महाराज ने बालक राम नरेश को दीच्छा दे वैस्नव संस्कार कराये और उनका नाम रामनरेश से बदल कर ”रामदास ”रख दिया, फिर संस्कृत ब्याकरण की शिच्छा दिलाने हेतु संस्कृत महाविद्यालय ग्वालियर भेजा,जहाँ से उन्होंने ज्योतिष ब्याकरणाचार्य के साथ ही एम ए की उपाधि भी प्राप्त की !जब महंत बाबा को विस्वाश हो गया की रामनरेश अब आश्रम की जिम्मेदारी सम्हालने के योग्य हो चुके है तब उन्होंने १९८२ में उनका ग्राम सुपावली आश्रम में अन्य छात्रों के साथ यज्ञोपवीत कराया और १९८३ के विशाल यज्ञ में गुरुबाबा लक्ष्मणदश जी महाराज, श्री श्री १०८ श्री भगीरथ शरण जी के शिस्य बाबा मंगलदाश जी से विचार विमर्श कर १२ अगस्त १९८५ को सम्पूर्ण ग्रामवाशी और संत समाज को बुला कर दंदरौआ आश्रम का कार्य सौप दिया और अधिकारी महंत बनाया ! महंत बाबा ने ब्रह्मचर्य जीवन ब्यतीत कर आश्रम की सेवा का संकल्प कराया !
संत रामदास जी महराज ने १९८५ में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार हेतु श्री हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम में ‘श्री ‘पुरुसोत्तमदाश संस्कृत महाविद्यालय ”की स्थापना की ! ५०० वर्ष पुराने जीर्णशीर्ण श्री रामजानकी मंदिर का निर्माण कराया !श्री हनुमान मंदिर बनवाया ! आश्रम में संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए अनेक कमरों का निर्माण कराया !श्री हनुमान जी के आश्रम के विस्तार के लिए ५० एकर भूमि ख़रीदी !संस्कृत विद्यालय भवन, छात्रावाश, गौशाला, यज्ञ शाला, भंडार गृह ,सत्संग सभागार ,उद्यान ,तालाब आदि बनवाए जो दिन प्रति दिन विस्तार किये जा रहे है !
महंत रामदाश जी महराज की नित्य दिनचर्या योगभ्याश से सुरु होती है ! ब्रह्मः मुहूर्त में प्रातः ४ बजे जागकर छात्रों से नित्य योग्याभ्याश कराना,गौशाला तथा आश्रम वाशियो की कुसलछेम जानना, और फिर श्रद्धालुओं के ब्यवस्था आदि करना छेत्रिय सत्संगों में सहभागिता करना, श्रीमद भागवत, श्री राम कथा, हवन यज्ञादि कर्मो को संपन्न करना, उनके जीवन के अभिन्न अंग है !
श्री दंदरौआ हनुमान चालीसा
श्री दंदरौआ हनुमान चालीसा
जय -जय -जय हनुमान कृपाला ,करो सदा संतन प्रतिपाला ।१ ।
मंगल ,शनि को जो कोई जावै, चोला तुम्हरे अंग चढ़ावै ॥२॥
रीझो तुम जो अधिक सदाई, मन इच्छा पूरण हो जय ॥३॥
भक्तन हित कलयुग के राजा, राम प्रताप तिलक तुम राजा ॥४॥
राम भक्ति अग्रणी हमेशा, सुमिरत तुमको मिटै कलेशा ॥५॥
राम सदा वश में कर राखे, हिरदय फार बताई राखे ॥६ ॥
सोई यह मंदिर पर है राजे, सौ फुट जाकी शिखर बिराजे ॥७ ॥
राम जानकी लखन सुहाए, दर्शन से पातक मिट जाये ॥८ ॥
हनुमत मंदिर विलग सुहाई, भूरि भब्यता सब मन भाई ॥९ ॥
चमत्कार अपनों दिखलावे, फोड़ा फुन्शी तुरत मिटावै ॥१०॥
कैंसर हो ,कैसी बीमारी, भागत दूर भक्ति बलिहारी ॥११॥
सुनकै नाम भक्त जन आवै, मनोकामना पूरी पावै ॥१२॥
जय -जय -जय कह मुख ते बोलें, आनंदमग्न मुदित हो डोलें ॥१३॥
भोले बाबा हू चल आये, मंदिर तिनको विलग सुहाए ॥१४॥
पारवती है पुत्र समेता, नन्दीगढ़ सह बसै निकेता ॥१५॥
निरख भक्त जय -जय मुख बोले, तिन संग करते आप किलोलें ॥१६॥
सिंह वाहिनी दुर्गा माता, सकल मनोरथ की है दाता॥१७॥
मंदिर में है सोभा पाती, अस्तभुजी स्वरुप दिखलाती ॥१८॥
निज भक्तन के काज बनाती, जग जननी माता कहलाती ॥१९॥
थोड़े में ही खुश हो जाती, भक्तन के मन सदा सुहाती ॥२०॥
भाई दयाल खेल के ऊपर, स्वर्ग बनाया है लामू पर ॥२१॥
मध्य पीपल का बृच्छ सुहाए, तैतिष कोटि देव सुख पावै ॥२२॥
ब्रह्मा जाकी जड़ बन आये, त्वचा रूप विष्णू दर्शाये ॥२३॥
शंकर साखा रूप कहावै, पत्र -पत्र सुर वाषा पावै ॥२४॥
नमो -नमो महिमा जग छाई, पूजन ते नाना फल पाई ॥२५॥
यज्ञ भवन की सोभा न्यारी, करत हवन तहँ जनता सारी ॥२६॥
ऐसो सुन्दर थल सुखदाई, निरखत गद -गद तन हो जाई ॥२७॥
संस्क़ृतभाषा का विद्यालय, वेद -ज्ञान का है देवालय ॥२८॥
ध्वनि सुन तिनकी देव विमोहे, भाषा देव जगत जन जोहे ॥२९॥
गौ माता है सब सुख दाता, भारत माँ से जिनका नाता॥३०॥
पालन -पोषण सबन सुहाई, गौशाला सोई यहाँ बनाई ॥३१॥
दंदरौआ धाम सुहावै, यश सुन जग जन दौरे आवै ॥३२॥
मनोकामना पूरण पावै, आप सबै चरनन सिर नावै ॥३३॥
राज भोग भंडार लगावै, साधू संत प्रसादी पावै ॥३४॥
पुरुसोत्तम बाबा मन भाई, जिनकी कृपा महंती पाई ॥३५॥
रामदास जी अब अधिकारी, बलिहारी जय -जय बलिहारी ॥३६॥
जिला भिंड में धाम सुहाए, दतिया ग्वालियर निकट बतावै ॥३७॥
मौ – मेहंगांव सड़क में आवै, मंदिर तक वाहन सब जावै ॥३८॥
एक मील तंह से है दूरी, मोटर सड़क पहुँच गई रूरी ॥३९॥
यह चालीशा उन्हें सुनावै, दंदरौआ धाम सुहावै ॥४०॥
दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान जी का अर्चाविग्रह
ओम दंदरौआ हनुमंते नमः दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान जी Doctor Hanuman Ji का अर्चाविग्रह श्री दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान के अर्चाविग्रह में श्री हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है! यह न्रत्य मुद्रा है! उनका श्री मुख भी बानर के स्थान पर बाला के रूप मंप है! उनकी गदा उनके हाथ के बजाय उनके बगल में रखी है! उनका स्वरुप विग्रह वात्सल्य भाव को दर्शाता है! ये बाबा तुलशी की रामचरित मानष की इस चौपाई से मेल कहती है -''एक सखी सिय संग विहाई ,गई रही देखन फुलवाई '' ये प्रसंग बाबा तुलसी ने पुष्प वाटिका के प्रसंग में भगवन श्री राम से माता जानकी को मिलाने के लिए श्री हनुमान जी को भेष बदल कर जानकी की सखियो में सखी चारुबाला के रूप में बताया है! ज्ञात हो जानकी की आठ सखियों में सखी चारुबाला प्रमुख सखी थी! इनने ही सर्व प्रथम माता जानकी का परिचय भगवन राम से कराया! इस प्रकार राम सीता विवाह का मार्ग परास्त हुआ था!दंदरौआ धाम में श्री हनुमान जी का अर्चा विग्रह इसी अवधारणा का द्योतक है! दंदरौआ धाम के अनुयाई संत भी सखी सम्प्रदाय के है ! वे बदन में सफ़ेद धोती धारण करते है और उसी को ओढ़ते है !