रतनगढ़ माता मंदिर का इतिहास
History of Ratangarh Mata Mandir in Hindi
-रतनगढ़ माता की कहानी (Story of Ratangarh Mata)
History of Ratangarh Mata Mandir -मध्यप्रदेश के दतिया में विंध्याचल पर्वत पर रतनगढ़ देवी का प्रसिद्ध स्थल विद्यमान है। यह मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर मर्सेनी (सेंवढा) गांव के पास स्थित है। यह स्थान पूर्णत: प्राकृतिक और चमत्कारिक है। यहां एक मंदिर रतनगढ़ मां का और दूसरा कुंवर बाबा का है।
स्थानीय ज्योतिषी सुधाकर पुरोहित के अनुसार रतनगढ़ माता मंदिर धार्मिक और प्राकृतिक वैभव के साथ डकैतों के आराध्यस्थल के रूप में भी विख्यात है। इसके पास से ही सिंध नदी बहती है। प्रत्येक नवरात्र में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा प्रतिवर्ष सैकड़ों घंटे मां के दरबार में चढ़ाए जाते हैं। मंदिर पर एकत्रित हुए घंटों की बाद में नीलामी की जाती है।
ये है मान्यता
स्थानीय लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि रतनगढ़ माता मंदिर की मिट्टी और भभूत में बहुत शक्ति है। इसके कारण जो कोई भक्त बीमार रहता है और यहां आकर भभूत खाता है, उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं मंदिर की मिट्टी खाते ही जहरीले जीवों का जहर भी बेअसर हो जाता है।
विष पर बंधन लगा देते हैं कुंवर बाबा
मान्यताओं के अनुसार कुंवर बाबा रतनगढ़ वाली माता के भाई हैं, जो अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। कुंवर महाराज जब जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे, इसीलिए जब किसी इंसान को कोई विषैला जानवर काट लेता है तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंधन लगाते हैं। इसके बाद इंसान भाई दूज या दिवाली के दूसरे दिन कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करता है।
Ratangarh Mata Mandir– क्या है रतनगढ़ माता मंदिर का इतिहास-
प्रसिद्ध रतनगढ़ माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। स्थानीय लोगों के अनुसार मध्यकाल में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने रतनगढ़ पर कब्जा करने की नीयत से सेंवढा से रतनगढ़ आने वाला पानी बंद करा दिया था, तब रतन सिंह की बेटी मांडूला और उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव ने अलाउद्दीन खिलजी के फैसले का कड़ा विरोध किया। इस पर नाराज खिलजी ने वर्तमान मंदिर रतनगढ़ वाली माता के परिसर में बने किले पर आक्रमण कर दिया। बताते हैं कि रतन सिंह की खूबसूरत बेटी मांडुला पर भी खिलजी की बुरी नजर थी।
मुस्लिम आक्रमणकारियों की बुरी नजर से बचने के लिए बहन मांडुला जंगल में समाधि ले ली और धरती मां से प्रार्थना की, कि वो उन्हे अपनी गोद में स्थान दें। मान्यता है कि जिस प्रकार सीता मां को पृथ्वी माता ने शरण दी थी, उसी प्रकार राजकुमारी को भी पहाड़ के पत्थरों में एक दरार दिखाई दी, इन दरारों में ही राजकुमारी समा गईं। उसी राजकुमारी को मां रतनगढ़ वाली माता के रूप में पूजा जाता है। तभी से यह मंदिर अस्तित्व में आया। साथ ही उनका राजकुमार भाई कुंवर गंगा रामदेव भी आखिर में युद्ध में शहीद हो गया। इसके बाद इसी मंदिर में उनकी पूजा कुंवर बाबा के रूप में की जाने लगी।
Ratangarh Mata Mandir– शिवाजी की निशानी है मंदिर-
यह मंदिर छत्रपति शिवाजी महाराज की मुगलों के ऊपर विजय की निशानी है। मान्यता है कि 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था और रतनगढ़ वाली माता और कुंवर बाबा ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास को देव गढ़ के किले मे दर्शन दिए थे। शिवाजी महाराज को मुगलों से फिर से युद्ध के लिए प्रेरित किया था, फिर जब पूरे भारत पर राज करने वाले मुगल शासन की सेना वीर मराठा शिवाजी की सेना से टकराई, तो मुगलों को पूरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा। मुगल सेना को परास्त करने के बाद शिवाजी ने इस मंदिर को निर्माण कराया था।
Ratangarh Mata Mandir:- देश के विभिन्न राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
विषबंध काटने के लिए मां रतनगढ़ का दरबार काफी प्रसिद्ध है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस पवित्र स्थान पर माता के दर्शन करने के लिए श्रद्वालु मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित देश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में प्रत्येक वर्ष आते हैं। यहां माता मंदिर पर घंटे और कुंवर महाराज मंदिर पर धातु के घोड़े चढ़ाए जाने की परंपरा है। ऐसे में श्रद्वालु अपनी मन्नत पूरी होने पर घंटे और धातु के घोड़े यहां चढ़ाते हैं।
दीपावली के दूज पर (Ratangarh Mata Mandir) यहां लक्खी मेला लगता है। जिसमें सर्पदंश से पीड़ित लोगों के बंध काटे जाते हैं। इस मेले में देश के कोने–कोने से लोग आते हैं। नवरात्र पर भी यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।
रतनगढ़ माता मंदिर के प्रमुख तथ्य
Important Facts of Ratangarh Mata Mandir
1.यह मंदिर घने जंगलों के बीच किले में स्थित है। यहां देवी मां की मूर्ति के अलावा कुंवर महाराज की प्रतिमा भी स्थापित है।
2. मान्यता है कि इस मंदिर की मिट्टी में इतनी शक्ति है कि इसे खाने से सांप, बिच्छू आदि के जहर का असर नहीं होता है।
3. देवी मां के मंदिर में जो भभूत निकलता है, उसे पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से रोग दूर हो जाते हैं।
4. इंसानों के साथ इस मंदिर में पशुओं का भी इलाज होता है। स्थानीय लोग भाई दूज के दिन पशु को बांधने वाली रस्सी देवी मां के पास रखते हैं। इसके बाद उस रस्सी से दोबारा पशु को बांधते हैं तो वे जल्द ही ठीक हो जाते हैं।
5. मंदिर में दीपावली अगले दिन यानी भाई दूज के दिन विशेष मेले का आयोजन होता है। यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
6. मान्यता है मंदिर का निर्माण मुगलकाल के दौरान हुआ था। उस वक्त युद्ध के दौरान शिवाजी विंध्याचल के जंगलों मे भूखे-प्यासे भटक रहे थे, तभी कोई कन्या उन्हें भोजन देकर गई थी।
7. स्थानीय लोगों के मुताबिक शिवाजी ने अपने गुरू स्वामी रामदास से उस कन्या के बारे मे पूछा तो उन्होने अपनी दिव्य दृस्टि से देखकर बताया कि वो जगत जननी मां दुर्गा हैं।
8. शिवाजी ने मां की महिमा से प्रभावित होकर यहां देवी मां का मंदिर बनवाया था। मान्यता है कि इस जगह जो भी दर्शन के लिए आता है वो कभी खाली हाथ नहीं जाता है।
35 किलो चांदी से बनाया रतनगढ़ माता का गर्भगृह, सोने के आभूषण भी बनवाए
Ratangarh Mata's sanctum sanctorum made of 35 kg silver, gold ornaments were also made
प्रशासन की पहल पर रतनगढ़ माता का श्रंगार स्वर्ण आभूषणों से किया जा रहा है। वहीं 35 किलो चांदी से माता का गर्भगृह भी बनाया जाएगा।
1. स्वर्ण आभूषणों से दमकने लगा मां रतनगढ़ का सौंदर्य
2. प्रशासन की पहल पर नए आभूषण से होने लगा श्रृंगार
3. 35 किलो चांदी से दमकेगा गर्भगृह
श्रद्धालुओं ने चढ़ाए थे आभूषण
बता दें कि माता रानी के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा सोने-चांदी के आभूषण दान पेटी में चढ़ाए गए थे। लंबे समय से सोने-चांदी के इन आभूषणों का ना तो कोई दस्तावेजीकरण था और ना ही इनका उपयोग हो पा रहा था। रतनगढ़ वाली माता पर चढ़ने वाले आभूषण और कुंवर बाबा मंदिर पर चढ़ाए गए धातु के घोड़े और घंटे उपकोषालय सेवढ़ा में वर्षों से बंद पड़े थे। जिसे लेकर प्रयास शुरू हुए और पहली बार डिप्टी कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित कर इन आभूषणों का दस्तावेजीकरण कराया गया।
22 सितंबर को दतिया कलेक्टर संदीप माकिन की अध्यक्षता में इन आभूषणों को तुलवाया गया। इस दौरान एसपी प्रदीप शर्मा औरअपर जिला मजिस्ट्रेट रूपेश उपाध्याय, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत कमलेश भार्गव भी मौजूद रहे। जिसके बाद साेने के आभूषणों को गलाकर मातारानी के श्रृंगार के लिए नए आभूषण बनाए जाने की पहल शुरू हुई।इन नए आभूषणों से रतनगढ़ माता के श्रृंगार में चार चांद लग गए हैं। वहीं अब मंदिर का गर्भगृह भी जल्दी ही चांदी से चमक उठेगा। इसके लिए करीब 35 किलो चांदी का इस्तेमाल होगा।
नवरात्र में सोने के नए आभूषणों से रतनगढ़ माता का श्रृंगार शुरू हो गया है। इससे माता रानी का श्रृंगार और भी आकर्षक लगने लगा है। मंदिर पर श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए गए सोने के आभूषणों को गलाकर प्रशासन ने यह नए आभूषण तैयार कराए हैं। जिनमें मातारानी का मुकुट, हार, कर्णफूल, माला आदि करीब 400 ग्राम से अधिक वजन के स्वर्ण आभूषण बनवाए गए हैं।
रतनगढ़ माता मंदिर के दर्शन कैसे करे ?
How to visit Ratangarh Mata Temple?
अगर आप भी रतनगढ़ माता मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, और साथ ही साथ आप कुंवर महाराज मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं। तो आपके लिए सही होगा कि आप सबसे पहले मंदिर के खुलने और बंद होने के समय के बारे में जान ले। ताकि आपको माता के दर्शन करने में किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो। तो इसके लिए हम आपको बता देते हैं कि, रतनगढ़ माता मंदिर यह मंदिर सुबह 7:00 बजे भक्तों के लिए खुल जाता है, और अगर इसके बंद होने के समय की बात की जाए तो यह रात 9:00 बजे बंद हो जाता है। तो अगर आप इस बीच आकर माता के दर्शन करना चाहे तो आसानी से कर सकते हैं। लेकिन हम आपको यह भी बता देते हैं कि यह समय निश्चित नहीं है। यह समय दिन और मौसम के हिसाब से बदल भी सकता है। इसलिए अगर आप यहां आए, तो सबसे पहले मंदिर का समय किसी जानकार से पता कर ले।
रतनगढ़ माता मंदिर कैसे पहुंचे ?
How to reach Ratangarh Mata Temple
हम आपको पहले ही बता देते हैं कि यह मंदिर दतिया जिले से 65 किलोमीटर और रामपुरा गांव से 11 किलोमीटर, दूर घने जंगलों में स्थित है, और इस मंदिर के पास ही सिंध नदी बहती है। तो चलिए अब आप यहां किस प्रकार पहुंच सकते हैं इसके बारे में जान लेते हैं।
-बस से रतनगढ़ माता मंदिर कैसे पहुंचे?
How to reach Ratangarh Mata Temple by bus.
यदि आप बस और ट्रेन से रतनगढ़ माता मंदिर आना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें कि दतिया एक प्रमुख जिला होने के नाते ग्वालियर, झांसी, भिंड आदि जैसे लगभग सभी प्रमुख शहरों से सड़क और ट्रेन मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।अगर यहां से इस मंदिर की दूरी की बात करें तो यह 65 किलोमीटर है। इसलिए आपको बस या ट्रेन से यहां आने में कोई परेशानी नहीं होगी।
-ट्रेन से रतनगढ़ माता मंदिर कैसे पहुंचे ?
How to reach Ratangarh Mata Temple by train
अगर आप ट्रेन के माध्यम से यहां आना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन दतिया रेलवे स्टेशन है जो झांसी, ग्वालियर, भोपाल, दिल्ली आदि से होकर जुड़ा हुआ है। अगर यहां से इस मंदिर की दूरी की बात करें तो यह 65 किलोमीटर है। जहां आप टैक्सी या कैब बुक करके जा सकते हैं।
-फ्लाइट से रतनगढ़ माता मंदिर कैसे पहुंचे ?
How to reach Ratangarh Mata Temple by flight
अगर आप फ्लाइट की मदद से यहां आते हैं तो इस मंदिर का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट भी ग्वालियर और दतिया में ही मौजूद है। अगर इस एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी की बात करें तो दोनों के बीच करीब 68 किलोमीटर की दूरी है। इसे पूरा करने के लिए, आप या तो स्थानीय बसों या टैक्सियों का उपयोग कर सकते हैं। यहां से आपको मंदिर के लिए टैक्सी आसानी से देखने को मिल जाएगी।
रतनगढ़ माता मंदिर आरती का समय
Ratangarh Mata Mandir Aarti ka Time
रतनगढ़ माता मंदिर यह मंदिर सुबह
6:00 बजे भक्तों के लिए खुल जाता है, और अगर इसके बंद होने के समय की बात की जाए तो यह रात
9:00 बजे बंद हो जाता है।
रतनगढ़ माता आरती का समय-
सुबह का समय- सुबह 7:30 शाम-
शाम 7:00 बजे
कुंवर महाराज की आरती-
सुबह का समय- सुबह 8:30
शाम- शाम 7:30 बजे
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FAQs of Ratangarh Mata Mandir
घने जंगल में सिंध नदी के किनारें विध्यांचल पर्वत श्रृखला के पर्वत पर स्थित देवी मंदिर हैं कि, यहां पर राजा रतनसेन ने देश धर्म की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक मुगलों से लोहा लिया था। राजा शंकर शाह के पुत्र रतनसेंन ने तेहरवीं शताब्दी में उसी अलाउद्दीन खिलजी से लोहा लिया था। यह मंदिर छत्रपति शिवाजी महाराज की मुगलों के ऊपर विजय कि निशानी है जो की सत्रहवीं सदी मे युध्द हुआ था
जब किसी इंसान को कोई विषैला जानवर काट लेता है तो उसके घाव पर कुंवर महाराज और रतनगढ़ माता के नाम का बंध लगाते हैं। बंध लगाने के बाद वो इंसान भाई दूज दीपावली के दूसरे दिन कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करता है जिसके बाद वो इंसान उस जहर से मुक्त हो जाता है और माई और कुंवर महाराज के दर्शन के बाद सही सलामत अपने घर चला जाता है
रतनगढ़ माता मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले से 63 किलोमीटर दूर मर्सैनी गांव के पास स्थित है।
लगभग 10 (935Kg) क्विंटल वजन के इस घंटे की नीचे की गोलाई का व्यास 13.5 इंच है। घंटा टांगने के हुक के व्यास की गोलाई 1.8 इंच है। घंटे की एक ओर त्रिशूल दूसरी ओर बैल के सींग दर्शायें गये हैं। घंटे पर 18 ॐ एंव 18 स्वास्तिक चिन्हित किये गये है। पूरे घंटे के ऊपर से नीचे तक 9 रिंग बनाये गये है।
रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्र 16 अक्टूबर 2015 में देश का सबसे वजनी बजने वाला पीतल के घंटे का उदघाटन मान्यनिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और साथ मे आये नरोत्तम मिश्रा जी द्वारा किया गया । जिसको नौ धातुओं से मिलाकर बनाया गया है
रतनगढ़ माता मंदिर पर लखखी मेला हर साल दिवाली की भाई दूज के दिन लगता है और यह मेला 2-3 दिन चलता है, इस मेले में लगभग 20-25 लाख भक्त दर्शन करने आते है।
रतनगढ़ माता मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले से 63 किलोमीटर दूर मर्सैनी गांव के पास स्थित है। बीहड़ इलाका होने की वजह से यह मदिर घने जंगल में पड़ता है। इसके बगल से ही सिंध नदी बहती है!
रतनगढ़ माता मंदिर पर लगभग 300 सीढ़ी है
रतनगढ़ मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया, ग्वालियर और भिंड जिले में स्थित है। रतनगढ़ मंदिर ग्वालियर, दतिया से लगभग 65 किलोमीटर और झांसी से 92 किमी और भिंड से 77 किमी दूर है
रतनगढ़ माता मंदिर या रतनगढ़ धाम दतिया कैसे पहुंचे—
रतनगढ़ माता मंदिर पर आप नजदिकी बस स्टैंड दतिया, ग्वालियर , भिंड और झांसी से रोड के रास्ते आसानी से पहुंचते हो, रतनगढ़ माता मंदिर के पास बाले सभी जिलों में रेलवे स्टेशन भी हैं जहां पर आप आसानी से आ सकते हो